असगर मियां को तो मैं खा गया लेकिन उसकी इसमें लखनऊ को जरूर खा गई

मुझे अचानक एक किस्सा याद आ गया मैंने सोचा लगा लूं आपको बता दूं मैं बटलर पैलेस लखनऊ के पीछे चुपचाप छिपकर एक अड्डा बनाए हुए था जहां पर मैं बदमाशों को अपराधियों और पुलिस को बुलाकर खबरें लिया करता था आज वहां पर एक विशाल मंदिर बना हुआ है अचानक वहां नेहरू परिवार के एक बच्चे काचर के साथ एक दिन मेरे पास मुंबई का रहने वाला असगर आया और बोला हम मुंबई से एक ऐसा सामान लाए हैं जो लखनऊ में खूब बिकेगा उसको ब्राउन शुगर कहते हैं वर्तमान में उसका नाम स्मैक है वह मैं यहां बेचना चाहता हूं और अगर आप अपना महीना बांध ले तो मैं आपको 10000 से ₹20000 महीने के बीच में देने को तैयार मैं कुछ समझा नहीं किए क्या करना चाहता है मैं स्वतंत्र भारत का क्राइम रिपोर्टर था वह मुझ को सेट कर रहा था मैंने देखा कि वह नेहरू परिवार की शीला कौन से संबंधित एक बालक काचर को लेकर ऑटो रिक्शा पर लखनऊ में टहलने लगा हमने उसकी गतिविधियों को वॉच किया तो पता चला कि वह एक नशे की पुड़िया बेच रहा है फिलहाल वह समय लखनऊ के कोने-कोने में ऑटो पर टहल कर उसको फ्री में भेज बांट रहा था मैंने उसको समझाया देखो लखनऊ में एक काम मत करो लेकिन वह नहीं माना क्योंकि उसके साथ पैसे के लालची तमाम लोग जुड़ गए थे आखिर में उसने महानगर हजरतगंज जैसे पॉश इलाकों में काफी संख्या में यह जहर की पुड़िया बांटने शुरू की मैं उसके पीछे लग गया मैंने तुमको नहीं करने दूंगा उसने कहा तुम्हारा जीना दूभर हो जाएगा हमने का वह मंजूर है मैंने उसके स्मैक के धंधे के खिलाफ लिखना शुरू किया स्वतंत्र भारत अखबार में उसको हजरतगंज पुलिस ने पकड़ा जेल गया बाहर आकर फिर बेचने लगा क्योंकि उसके साथ नेहरू परिवार के लोग थे फिर मैंने बंद कराया वह अकड़ अमीनाबाद में बेचने लगा फिर मैंने बंद कर आया उसको इस समय तक शहर में वो काफी लोगों को स्मैक के नशे का आदी कर चुका था उस समय स्कोर ब्राउन शुगर कहते थे मुंबई से लेकर आया था फिर उसने अपना अड्डा हुसैनगंज में मनाया मेरा पायनियर अखबार वहां था मैं इसके पीछे लग गया फिर उसको को बंद कराया जेल गया उसके बाद उसके घर के लोग यही धंधा करने लगे कुछ ही समय में इसने इतना पैसा कमा लिया लखनऊ में कि वह पैसे बल के बल पर पूरे शहर को अपने जहर के जाल में फंसा लिया नौजवान लड़के इसके शिकार हो गए मैं बार-बार लिखता रहा और इस को जेल भिजवा ता रहा लेकिन यह बाज नहीं आया शहर में इसका जहर फैल चुका था लोग पैसा लेकर उसके घर को खरीद रहे थे फिर मैं जब पुलिस के पीछे पड़ गया तो पुलिस नेस्को जेल से बाहर तो नहीं निकलने दिया लेकिन तब तक लखनऊ इसके जहर के शिकंजे में आ चुका था मुझको लाख कोशिशों के बाद भी यह खरीदना पाया और मैंने उसके खिलाफ इतना लिखा किए जेल से नहीं छूट पा रहा था और आखिर में यह जेल में मर गया लेकिन इसने लखनऊ में ऐसा जहर फैला दिया क्यों आज तक नौजवानों युवकों को छात्रों को अपनी गिरफ्त में लिए हुए हैं चिनहट जैसे क्षेत्र में जहां इस बड़े बड़े स्कूल और कॉलेज हैं वहां स्मैक का धंधा जोरों पर चल रहा है पुलिस भी खा रही है बच्चे बर्बाद हो रहे हैं अब मैं करूं क्या लेखनी से असगर को तो मैंने समाप्त कर दिया जो कि शहर लखनऊ में लाया लेकिन क्या करूं उसने जहर इस कदर फैला दिया कि अब उसका खात्मा करना मुश्किल है लाखो लोग इसके अभी आदी हो गए हैं मैं आरडी शुक्ला सिर्फ सिर्फ सिर्फ स्वतंत्र भारत में लिखकर जो कर सकता था मैंने किया उसके बाद मेरी कलम छीन ली गई और मैं खुद सड़क पर आ गया लिहाजा मैं कुछ ना कर पाया और आज बच्चों को बर्बाद होते देखकर इतना संतोष होता है कि मैंने अपनी कलम का सही उपयोग करके असगर जैसे राक्षस को जी ने तो नहीं दिया बस यही पर संतोष है आपका आरडी शुक्ला आपको यह सब बताता जरूर जाएगा धन्यवाद