दोस्तों मैं आपको 80 के दशक की वह कहानी सुना रहा हूं जो हकीकत है जो सच्ची है मेरे आंखों देखी है उस समय में स्वतंत्र भारत अखबार का क्राइम रिपोर्टर था हमारे संपादक था विधानसभा चल रही थी उस समय गृहमंत्री से स्वर्गीय स्वरूपरानी बक्शी कांग्रेस की उन्होंने विधानसभा में कहा डाकू छविराम कहीं भी नहीं आया है उस समय मैनपुरी इटावा एटा और उधर के बीहड़ों में सबसे ज्यादा खतरनाक और सबसे ज्यादा संख्या में डाकू छविराम का गिरोह जाना जाता था अत्याधुनिक हथियारों से लैस छविराम प्रदेश के लिए एक खतरनाक डाकू था अचानक हमारे संपादक स्वर्गीय वीरेंद्र सिंह जी ने हमको बुलाया और हमसे कहा गृहमंत्री स्वरूपरानी बक्शी ने विधानसभा में बयान दिया है की डाकू छविराम मैनपुरी में नहीं आया है और ना ही उसको आत्मसमर्पण के लिए कोई छूट दी गई हमने का क्या करना है सर मैं उन दोनों खतरनाक किसी भी कार्य को करने के लिए तैयार रहता था और खतरनाक कहानियों में मेरा अपना इंटरेस्ट हुआ करता था उन्होंने कहा किसी भी हालत में यह पता करो कि क्या छविराम को सरकार ने आत्मसमर्पण करने के लिए खुली छूट दी और मैनपुरी में बुलाया हमने इसके लिए हमको जाना पड़ेगा वहां उन्होंने हमसे कहा ठीक है साधन उपलब्ध है तुम वहां जाओ और किसी भी तरह से मुझे लाकर यह सबूत दो छविराम वहां आया था आत्मसमर्पण करने के लिए नौकरी कर रहा था मुझे अपने संपादक का आदेश किसी भी हालत में मानना था चाहे जान चली जाती मैंने प्रेस में एक जीप का इंतजाम किया आज की तरह अत्याधुनिक गाड़ियां उस समय नहीं होती थी यह कटारे जी मुझे मिली जो हर बार ले जाया करती थी मैं और मेरे साथी कुछ लोग जिनमें मेरे वरिष्ठ संपादक मनोज तिवारी जी कई और लोग बीजेजी पर बैठ सकते थे बैठ गए मैंने जीप को मैनपुरी चलने के लिए कहा और लखनऊ से चल दिया एक फोटोग्राफर आरके मेरे साथ थे रात भर सफर करने के बाद हम लोग सुबह मैनपुरी पहुचे वहां पर हम लोगों ने पता किया कि क्या यहां आत्मसमर्पण करने के लिए छवि राम डाकू आया है चारों ओर सन्नाटा था कोई कुछ बताने को तैयार नहीं था पता यह चला था हमको कि लखीमपुर के विधायक केसरवानी जी छविराम को आत्मसमर्पण करवा रहे हैं और उसे राजनीति में लाना चाहते हैं मैनपुरी में जाकर पता चला पुलिस ने कहा छविराम ने 200 पुलिस वालों को मार रखा है लिहाजा पुलिस उसको जिंदा नहीं पड़ेगी और इस बात पर पुलिस और सरकार में जबरदस्त विवाद छिड़ गया इससे पहले मैं बता दूं की छवि राम डाकू मैनपुरी इटावा चंबल बीहड़ क्षेत्र में इस तरह को क्या था अपने साथियों बुरा नारसिंह पोथी आदि के साथ क्यों लगातार पुलिस पीएसी से मुठभेड़ करता था काफी पुलिस वालों को मार चुका था यही नहीं उसने अलीगंज एटा में थाने में घुसकर पूरे थाने वालों को मार दिया था और वहां से हथियार लूट लिया था पता नहीं कितने पीएससी वालों को मार कर उसने एलएमजी एसएलआर जैसी अत्याधुनिक हथियारों को प्राप्त कर लिया था उसका गिरोह बहुत शातिर गिरोह था उस पर हाथ डालना पुलिस काल पर हाथ डालना समझती थी इसी सबके चलते जब उस पर ज्यादा दबाव पड़ा तो वह चुपचाप भाग कर ग्वालियर में मेजर बनके एक महिला के साथ रहने लगा था लेकिन अचानक को गुप्तचर विभाग वालों ने पता किया और उसके छापा मारा और जब वहां से फरार हुआ तो फिर आकर बीहड़ में डाकू हो गया यही नहीं मुलायम सिंह जैसे नेता भी उससे बहुत घबराते थे बड़े-बड़े नेता और मुलायम सिंह भी जब उसके गांव में छविराम आता था तो उसको गांव के बाहर तक स्वागत करते हुए छोड़ने जाते थे और उसकी सुरक्षा का इंतजाम करते थे यादों का वह एकमात्र नेता था जिसके पीछे पूरा कुनबा रहता था लगभग उसने 200 पुलिस वालों को फर्रुखाबाद जालौन एटा मैनपुरी इटावा में मुठभेड़ों के दौरान मारा था और हथियार लूटे थे जब हम लोग मैनपुरी में पहुंचे और हम यह सोच कर पहुंचे थे कि वह आत्मसमर्पण करेगा और हम लोग फोटो वगैरा खींचकर अखबार को भेजेंगे उस समय न मोबाइल का केवल कंकाल से हम बात कर सकते थे अपने प्रेस में मैनपुरी में हम भटक रहे थे वहां के उस समय कप्तान थे विक्रम सिंह सरदार जी जो बाद में पुलिस महानिदेशक भी बने उनसे मुलाकात हुई हम लोगों ने पूछा क्या यहां आज आत्मसमर्पण होना है कुख्यात डाकू छविराम आया है उन्होंने साफ इनकार कर दिया कहा कि ऐसा कुछ नहीं है यहां कोई छविराम नहीं आया है और कोई आत्मसमर्पण है हम लोगों के होश उड़ गए कि आखिर हम लोग किस हाल में फंस गए हैं हमको तो नौकरी करनी थी जब इधर उधर से हमने सुराग लगाया तो पता यह चला कि छविराम आया तो है लेकिन वह अपने गांव हर नगर पुर मैं यज्ञ कर रहा है जो मैनपुरी से लगभग 15 20 किलोमीटर है हम लोगों ने आव देखा ना ताव जोश में थे उसके गांव की ओर गाड़ी दौड़ दी जब हम लोग हर नागलपुर पहुंचे उस से 1 किलोमीटर पहले अचानक हम लोगों पर गोलियां चलने लगी वक्त लगभग 100000 लोगों की भीड़ थी गोलियां उस भीड़ के तरफ से ही चल रही थी हम लोग घबरा गए पर अपने बचाव के लिए हम लोग जीप से उतर कर खेतों में ले पानी में लेट गए लगभग 1 घंटे तक एसएलआर एलएमजी राइफल से लगातार हम लोगों पर गोलियां चलती रहे उन्होंने किसी तरह अपना बचाव किया वास्तविक ता यह थी कि हम लोगों ने आर्मी वाले कोट पहन रखे थे गाड़ी के आगे जीप पर प्रेस लिखा हुआ था छविराम गिरोह वहां मौजूद था छविराम यज्ञ कर रहे थे उसके गिरोह ने हम लोगों को पुलिसवाला समझा और गोलियां बरसा दी लगभग 1 घंटे के बाद जब हम लोगों की तरफ से कोई जवाब नहीं हुआ तो उधर से गोलियां चलनी बंद हुई हम लोगों ने हाथ हिलाया और काफी लोगों से बताया कि हम लोग प्रेस के लोग हैं तब उधर से गोलियां चलना बंद हुई फिर कुछ लोग आए और हम लोगों से पूरी तहकीकात करने के बाद अपने कैमरे वगैरह वही रख दे ऐसा कहने के बाद हम लोगों को छविराम के पास ले गए छविराम जी कुर्ता पजामा पहने हुए थे और यज्ञ करके उठे थे उनसे हम लोगों की बातचीत हुई उन्होंने कहा कि सरकार से हमारी बातचीत आत्मसमर्पण की हो रही थी लेकिन वह अब टूट गई है अब हम लोग फिर बीहड़ में जा रहे हैं हम लोग आत्मसमर्पण अब नहीं करेंगे अब हम लोग ज्यादा देर यहां नहीं रुकेंगे हर नगर पुर छविराम का गांव था वहां की हालत देखकर शोले फिल्म बेकार लगती है पेड़ों पर छोटे छोटे लड़के बंदूकें लेकर फेटा बांधे हुए छविराम की सुरक्षा में लगे थे एलएमजी लेकर वहां ट्यूबवेल पर एक पीएसी का भगोड़ा मथुरा सिंह लेटा हुआ था चारों ओर बंदूक लेकर राइफल लेकर लोग लगे हुए थे हम लोगों ने शिकायत की कि ये गोलियां क्यों चलाई इस पर छविराम में भूरा सिंह सहित कई लोगों को हमारे सामने मारा और बहुत डांटा सब ने कहा हम लोगों ने पुलिस समझ लिया था इन लोगों को छविराम ने हाथ जोड़कर कहा कि अब हम लोग बीहड़ में वापस जाकर फिर वही डाकू का काम करेंगे जो करते रहे हैं खैर हम लोगों से काफी देर बात हुई हमारे संपादक मनोज तिवारी जी ने छविराम जी से काफी बात की उसके बाद छविराम गिरोह एक तरफ चल दिया और हम लोग अपने जीप की ओर अब सवाल ये उठता था मेरे दिल में बात होती कि हम खबर क्या ले जा रहे हैं हमको तो यह स्पष्ट करना है कि छविराम आया था अब तक हमको कोई सबूत नहीं मिला था हमारे कैमरे रखा लिए गए थे इस बीच हमने और फोटोग्राफर आरके ने एक तरकीब निकाली हमने का आरके तू जीप में जाकर पीछे लेट जा और जो जीप चले तुम फोटो खींचो अपने कैमरे में टैली लेंस लगा लो वह हिम्मत ही था उसको आगे भेज कर मैंने जीप में उसे पीछे के हिस्से मैं लेट वादिया जब हम लोग वहां पहुंचे और जीप चलने को हुई तू ठीक उसी समय आरके ने फोटोग्राफ लेना शुरू कर दिया डाकू इस करतब को ना समझ पाए हम लोगों ने वहां से अपनी जी प भवानी शुरू कर दी रास्ते में मनोज तिवारी जी को तकलीफ शुरू हो गई और वह बेहोश हो गए कहीं से पानी का इंतजाम करके उनके मुंह डाला तो उनको होश आया इसी तरह हम लोग मैनपुरी पहुचे अब समस्या यह थी कि छविराम की फोटो हम लोग ले पाए हैं या नहीं उस समय रेल वाला कैमरा हुआ करता था उसको वहां मैनपुरी में हम लोगों ने साफ करने को दे दिया भाग्य की बात थी जब रील धोली तो उसमें छविराम डाकू की साफ फोटो आ गई हमने वही से अपने संपादक को ट्रंक काल करके बताया कि हम उसकी फोटो लेने में सफल हो गए अब हम सवेरे तक वहां लखनऊ पहुंच पाएंगे रात भर हम लोग सफर करते रहे गाड़ी भी इतनी अच्छी नहीं थी खटारा टाइप की जिप्सी थी सुबह हम लोग लखनऊ पहुंचे वैसे तो यह पूरा काम हमारा और फोटोग्राफर का था लखनऊ पहुंचने के बाद हमारे अखबार ने छविराम की वह फोटो छापी और गृह मंत्री के बयान को गलत साबित किया कि छविराम डाकू आया ही नहीं था हमारे अखबार ने दिखा दिया कि नहीं छविराम आया था गृहमंत्री की बात झूठी निकली हम लोग इसी उद्देश्य से गए थे जबकि डाकुओं ने हम लोगों की जान लेने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी आरडी शुक्ला द्वारा विशेष अभी कहानी जारी रहेगी
यह उस छविराम डाकू की कहानी है जिसने एटा जिले के अलीगंज थाने में घुसकर सारे पुलिस वालों को मार कर हथियार लूट लिए थे