आज सुन रहा हूं कि लखनऊ में चारों ओर अराजकता की स्थिति है सड़कें गाड़ियों से फूल है इतनी भीड़ हो गई है इतना कंक्रीट का छत पड़ गया है कि यहां की आबोहवा बर्बाद हो गई है लोग बीमार पर बीमार होते जा रहे हैं रोक पर रोक लेते जा रहे हैं क्या मालूम है कि आज यहां की आबादी क्या हो रही है मैं तो जब आया था तो यहां पांच लाख की आबादी भी नहीं रही थी आवाज 5000000 से भी ऊपर है बहुत आगे तक जाए जाए तो एक करोड़ हो जाएगी आप सोचें लखनऊ की क्या हालत हो रही है जिस लखनऊ में शाम होते ही सड़कों पर सन्नाटा हो जाता था आज वहां शाम को जाम लगता है सड़कों पर आखिर क्यों सड़कें वही उनके साइज वही सारे कारोबार शहर के बीच में होते हैं हजरतगंज हो लालबाग अमीनाबाद हो विधानसभा हो या शहर पुराने शहर का कोई सा हिस्सा लोग बाहर से आते गए बसते गए कौन कहां बस रहा है कौन सी हवेली कहां बन रही है यह किसी ने ध्यान नहीं दिया अब जब ध्यान दे रहे हैं तो कितने घरों को तोड़ेगा कोई गली कूचे सब भर गए हैं कालोनियां अस्त-व्यस्त हो गई है महीना ली है ना कहीं ना ले हैं न कहीं सफाई है ना व्यवस्था है इस तरह से शहर नहीं बसाया जाता और क्योंकि हम लोगों के देखते देखते यह सब हुआ यहां तो सिर्फ पेड़ और बाघ और खेत खलियान थे यहां पर जिस तरीके से अंधाधुंध पेड़ों की कटाई और फिर प्लाटों की कटाई हुई और फिर कंक्रीट के छठ डाले गए वह लखनऊ की तबाही के लिए बहुत है आप नहीं मानते सारे प्रदेश के लोग नहीं पूरे देश के लोग यहां आकर बस गए सिर्फ इसलिए चार जगहों पर इतनी शांति नहीं है जितनी लखनऊ में मुंबई बम कांड से दहल गया था दिल्ली सुरक्षा के मामले में सख्त है लखनऊ को लोगों ने अपना अड्डा बना लिया चारों ओर से लोग लखनऊ में भाग आए ठीक है लखनऊ को खूब बढ़ना चाहिए लेकिन इतना भी नहीं 11 सड़क जाम हो चारों तरफ अफरा तफरी हो लखनऊ बहुत सुंदर बाघों का घर था यहां था क्या नवाबों की नगरी थी 500000 की आबादी में हम लोग आए थे सड़के सूनी रहती थी शाम होते ही लोग घरों में घुस जाते थे हर आदमी एक दूसरे को पहचानता था आज बगल वाले घर के लोग को कोई नहीं जानते पता नहीं लोग कहां से आ जा रहे हैं लेकिन लखनऊ बढ़ता जा रहा है ठीक है उस लखनऊ को भी याद कर लीजिए कि जब यहां रंगीन मिजाज लोग रहा करते थे उनको नवाब कहते थे यहां की तहजीब पूरे विश्व प्रसिद्ध थी यहां कोई गलत ढंग से बात करना नहीं जानता था आज यहां लट्ठमार भाषा का जो प्रयोग हो रहा है उससे लखनऊ का मिजाज बदल चुका है अपराध का जो ग्राफ है बहुत ज्यादा बढ़ गया है यहां की कॉलोनी आसपास के जिलों तक पहुंच गई है लेकिन ना कोई कारखाना बना ना कोई रोजगार का साधन उपलब्ध कराया गया केवल अगर बना है यहां तो सिर्फ कॉलेज स्कूल शोषण के केंद्र प्रदेश भर से लोग आकर यहां पढ़ाई कर रहे हैं लेकिन वह नौकरी कहां करेंगे सरकारी कार्यालय तो फूल है प्राइवेट तनखा ही नहीं दे पा रहे हैं सिर्फ यहां पर पढ़ाई के नाम पर पैसा वसूला जा रहा है बिजली है चमक दमक है मॉल हैं अच्छी कालोनियां हैं रौनक है उसको देख कर लोग गांव घर से अपने खेत खलियान बेचकर लखनऊ भाग रहे हैं यहां प्लाट खरीद रहे हैं घर बना रहे हैं गाड़ियां खरीद रहे तो क्या इससे लखनऊ पनप जाएगा यहां किस कदर बीमारियां फैल रही है कितनी गंदगी हो गई है आदमी ठगी के अलावा कोई दूसरा काम नहीं कर रहा है या तो यहां नेता सुखी हैं या सरकारी ऑफिसर तो फिर क्या होगा जो अपार जनसंख्या यहां बढ़ती जा रही है कहीं पर तो कंट्रोल करना पड़ेगा मरना यहां जो मुंबई में हुआ और दिल्ली में जो सुरक्षा की शक्ति हुई वही नतीजा भुगतना पड़ेगा इसलिए अभी से अगर हम चेत जाएं तो लखनऊ का कल्याण हो सकता है वरना यहां तबाही निश्चित है भीड़ बहुत बढ़ चुकी है सड़क लोहा से पट चुकी है आदमी आदमी पर चढ़ाया रहा है गलत कह रहे हो आप यहां जो सिलसिला शुरू हो गया है वह बंद होने वाला नहीं पुलिस कम अपराधी ज्यादा है अब देखना है कि हम आप मिलकर लखनऊ को बचाते कैसे हैं लखनऊ की नजाकत नफासत कैसे कायम रखते हैं आज लखनऊ में जिस तरह ठगी का कार्यक्रम चल रहा है उसको समय रहते नहीं रोका गया तो यहां बहुत बड़ी तबाही शुरू हो जाएगी मैं आरडी शुक्ला आपको यहां की सच्चाई बता रहा हूं बताता रहूंगा आप उसको ध्यान से सुनते रहे हमारी वेबसाइट पढ़ते रहे हम बहुत कुछ बताएंगे आपको नमस्कार फिर मिलेंगे
आज हमारे लखनऊ को क्यों नजर लग गई है जो तरक्की की